Monday, August 6, 2012

भ्रष्टाचार की जड़ कौन ?


भ्रष्टाचार की जड़ कौन ?

शर्म तो है नहीं इन भ्रष्टाचार विरोधीयो को ! पता नहीं कहा से दिखाई दे देता है भ्रष्टाचार इनको ? जहाँ   भ्रष्टाचार है वहां जाकर अपना विरोध प्रकट करे इनको कौन रोकता है ? इस प्रजातंत्र में सबको हक़ है अपनी बात कहने की । आज देश कितना तरकी कर रहा है ये नहीं दिखाई देता इनको बेवजह रोड जाम कर रखा है कभी जंतर मंतर जाम  कर देते है तो कभी रामलीला ग्राउंड .................। इससे देश की तरक्की में नुकसान है बता भाई दस दिन में कितना नुकसान हुआ होगा देश का ?  ये पगले खाली हमारे नेताओ को दोष दे रहे है आरे भाई किसी को दोष देने से पहले सोंच लेना चाहिए ।  



यही वाद - विवाद हो रहा था की  मैं पंहुचा .... फिर मैंने बोला -


देखिये भाई जहाँ  तक मुझे समझ में आ रहा है  इसका जिम्मेवार इस देश का बुद्धिजीवी वर्ग है ना नेता है ना अफसर शाही ना नयायपालिका ना इस देश का युवा | इस कहानी की शुरुवात एक युवा से होती है वह चाहता है की देश के लिए कुछ अच्छा करे एक अच्छे समाज की कल्पना करते हुए वह अपनी पढाई करता है जब पढ़  लिख कर आगे नौकरी के लिए जाता है तो उसका मुकाबला भारतीय समाज के एक ऐसे वर्ग से होता है जो बुद्धिजीवी है | सबसे पहला सामना माँ और बाप से होता है जो यह आशा करता है की उसके लडके का एक ऐसी जॉब (नौकरी ) लग जाये जिसमे तनख्वाह के अलावा उपरी आय हो और अपने बेटे से कहते ही नहीं है अपितु दबाव डालते है कि कोई ऐसी नौकरी ढुंढना जिसमे उपरी आय हो और इसके पीछे वो घुस कि भी तैयारी करते है  वही लडके का दिमाग घूम जाता है और भ्रष्टाचार की नीब पड़ जाती है |

आगे उसका फिर सामना एक ऐसे बुद्धिजीवी वर्ग से होता  है जो यह कह कर उसका दिल तोड़ देता है की तुम कुछ भी कर लो कितना भी पढ़ लो कितना भी योग्य बन जाओ  बिना घुस के तुम कुछ नहीं बन सकते |  उसे भ्रष्ट आचरण के कई उदाहरण दिए जाते है उसे यह समझाया जाता है कि यहाँ सब कुछ ऐसा ही है और ऐसा ही होता आ रहा है आगे भी तुम्हारे साथ ऐसा ही होगा | उसे इतना थका दिया जाता है की वह वही हथियार डाल देता है और वह भी उन्ही बुधिजिवियो के  गैंग में शामिल हो जाता है |

ये  वही कथित बुद्धिजीवी है जिन्हें अच्छा करने का हौसला देना चाहिए था तो उसका कई दाव -पेंच देकर उसका मनोबल तोड़ते है और कहते है तेरी सोंच से देश समाज नहीं चलने वाला | उसके  सपनों  में रोड़े अटकाए जाते है चार और समझाने वाले बुद्धिजीवी लाकर सामने खड़ा कर दिया जाता है कि समझाइए इसे,  इसे दुनिया कि समझ ही नहीं है पता नहीं ये क्या करेगा | वह युवा जो गाँव समाज के लिए कुछ करना चाहता है तो सबसे पहला उसका सामना उस गाँव या समाज के बुधिजिवियो से होता है , उसकी एक नहीं सुनी जाती है और उसे तरह तरह से डराया धमकाया जाता है कहा जाता है कि पढ़ने लिखने से मतलब रखो इस राजनीति में तुम्हे पड़ने कि जरुरत नहीं है ये हम बुधिजिवियो का काम है | कई वार अधिक चतुर बुद्धिजीवी तो उसका साथ भी देते है और उसका भरोसा जित कर  उसे इतने बड़े चक्रव्यूह में फंसा देते है कि समाज सेवा भूलकर वो भी उसी रंग में रंग जाता है |

यही काम यदि कोई युवा देश या राज्य स्तर पर करता है तो बुधिजिवियो कि तो कमी ही नहीं है ये कई शक्लो में कई ओहदों पर समाज और देश को अपनी दिशा देने के लिए बैठे है सबसे पहले बोलने कि तमीज सिखाते है नसीहत देते है अनुभव का | यही अनुभव का उपयोग वे युवाओ को दिशा देने के लिए करते तो कैसा होता ? लेकिन वे इसका उपयोग नसीहत के लिए करते है ताकि उनके कुकर्मो में रोड़ा ना आये उस पर चौतरफा वार किया जाता है ताकि टूट कर हट जाये और ऐसे ही देश समाज चल रहा है चलता रहे |

मेरा मानना है कि आज से 30 वर्ष बाद भारत कि तस्वीर बदलेगी युवा अब अपने हाथ में कमांड लेंगे और इन कथित बुधिजिवियो कि एक नहीं सुनेगे क्योकि आज के युवा बदतमीज हो गए है बुधिजिवियो कि बात सुनते नहीं है |

यदि कोई गलती हो गयी हो तो माफ़ करना क्योकि मैं अभी आप सभी बुधिजिवियो के सामने बच्चा हूँ और आगे भी रहूँगा मै ये वादा करता हूँ । वताइए हम बेवजह अपने धर्मंनिष्ठ और कर्मनिष्ठ नेताओ और इमानदार अफसरों को भ्रष्ट बताकर समय बर्वाद कर रहे है समय कि कीमत ये चार दिन के लडके क्या जाने , यदि ये समय कि कीमत जान जाते तो बेरोजगार नहीं घुमते लाखो कमाते हमारी तरह | आरे भैया कमाते या लुटते लुटते देश को ?  

Friday, August 3, 2012

क्या अन्ना को राजनितिक विकल्प देना चाहिए ?

क्या अन्ना को राजनितिक विकल्प  देना चाहिए ?

तो सीधा सा जवाब है - हाँ अवश्य देना चाहिए । क्योकि इसके सिवा दूसरा उपाय भी नहीं है हमारे  पास की हम अपनी सोंच को संसद तक पंहुचा सके और हम अपनी समस्याओ का  निराकरण ( solutions) पा सके । चूँकि हमारे पास निम्न विकल्प है
(1)  आन्दोलन करे अनशन करे देश को जगाये और अपनी आवाज रिमोट  से चलने वाली सारकार तक पहुचाये, क्या गारंटी है की हमें फिर धोंखा नहीं मिलेगा ? हम किस पर विश्वास करे कौन सी राजनितिक पार्टी हमें सभी समस्याओ निजात दिलाएंगी क्या  कांग्रेस ? सात जन्मो में भी नहीं । उसने आजादी की नीब ही तुस्टीकरण और शोषण के आधार पर रखी अंग्रेजो  की निति अपनागाई कारन की कांग्रेस की बीज  एक अंग्रेज  ने डाली तो गोरे और काले से एक नया ( Hybryd ) वंश तो आयेगा ही फिर उसी नस्ल ने नयी बीज डाली तो बहुत सारे कपूत पैदा हुए ( जैसे लालू , मुलायम , नितीश वि  पी सिंह और भी क्षेत्रीय पार्टिया ) "बोये बीज बबुल के तो आम कहा से पाए "  इनसे उम्मीद करना बेमानी है खुद को धोखा देना है । बीजेपी खुद प्रभु के  मार्ग से भटक चुकी है सभी से प्रेम का नाटक करना छलावा  है सांप्रदायिक विरोधो ने उसे अलग कर रखा है वह पुरे भारत का नेतृत्व नहीं कर सकती है उसमे बदलाव चाहिए, कर्मनिष्ठ होना पड़ेगा देश के प्रति, जबाब देह होना पड़ेगा सभी सम्प्रदायों के प्रति , क्योकि जनता परिवर्तन चाहती है । यह परिवर्तन सभी में होगा पार्टिया बदलेंगी नेता बदलेंगे उनका संविधान बदलेगा वोटर बदलेंगे गाँव बदलेगा सोंच बदलेगा देश बदलेगा ।    

 (2)    या सड़क पर बैठ कर "रघुपति राघव राजाराम  गाते रहे'' इस उम्मीद में की इश्वर कोई चमत्कार करेगा तो ऐसा तभी संभव है की हम सभी खुद को कापुरुष घोषित कर दे । इश्वर यह जान जायेगा की मेरे सभी पुत्र ऐसे ही पैदा हुए है उनके बस की कुछ नहीं है ।      
(3)     यदि गौर करे तो पाएंगे की अन्ना का विकल्प ही बचता है क्योकि जो क्षमता वान है, वीर  है, प्रभु का पुत्र है उसकी दृष्टि सिर्फ निराकरण की और होती है उसे सिर्फ यही चिंता रहती है की सबका भला कैसे हो । यही अन्ना कर रहे है । चोर अन्ना में नहीं हमारे में है हम अन्ना को सब कुछ मानते भी है और कुछ करने भी नहीं देते है यह कैसा अन्ना प्रेम है क्या पिता अपने पुत्रो का बुरा सोंच सकता है ?  नहीं ।   तो फिर अन्ना के कुछ समर्थक जो किसी न पार्टी से जुड़े है खम्भा पकड़ रखे है वो आन्दोलन भी चाहते है काम  भी चाहते है और खम्भा भी नहीं छोड़ना चाहते । पार्टियों के मोह में फंसे  है  यह  फकीरों की टोली है यहाँ सब कुछ छोड़ कर आना पड़ेगा । और सच्चे मन से कहना पड़ेगा की अन्ना तुम  जो चाहते हो उसी में हमारी भला है । और हम तुमसे राजनीती का नया परिभाषा सिखना चाहते है बन जाओ हम सबके गुरु , बिफल हो कोई  बात नहीं  क्योकि स्टुडेंट कच्चे है लेकिन हर साल कोई न कोई तो तुम्हारी पाठशाला से भगत सिंह या लाल बहादुर बनकर निकलेगा । बस हो गया देश का कल्याण । 

Jay Hind 

Tuesday, July 31, 2012

प्रभु का सन्देश !

भाग -2 (जनता के नाम )
प्रभु का सन्देश ! प्रभु ने जो यह धर्म -युद्ध छेड़ा हैं यह शीत -युद्ध की भांति कई वर्षो तक चलेगा । इसके कई रहस्य है इसे वही  जान सकता है जो प्रभु के कार्य को तन - मन और धन से कर रहा है और इसके साथ चाहिए प्रभु के प्रति अटूट टान वही टान उसे प्रेरित करेगी । वर्त्तमान में जो भी घटनाये हो रही है प्रभु सन्देश के मुताबिक सच होती प्रतीत हो रही है । ये युद्ध केवल एक जन लोकपाल या चंद केंद्र में बैठे मंत्रियो के विरुद्ध नहीं  
अपितु पूरी सिस्टम , अधर्म , कापुरुषता के विरुद्ध है । यह युद्ध स्वराज्य की स्थापना , सदाचार की स्थापना, पुन धर्म की स्थापना, आपसी सहयोग की स्थापना , भारत को विश्व शांति के दूत के रूप में स्थापना, के लिए है । प्रभु ने स्वयं इस युद्ध की कमान अपने हाथ में ले रखी है और हम उनके निर्देशानुसार अज्ञानी की भांति कार्य कर रहे है , क्योंकि प्रभु  के पास अच्छे सदाचारी सेनापतियों की कमी है । यह इस युग कलयुग की माया है । यही कारन कारण है की यह युद्ध काफी लम्बा चलेगा । हमारे धबराने या धैर्य खोने या उतेजना वश किया गया कार्य हमें बहुत पीछे धकेल देगा यहाँ तक की हमें अपनी गलतियों की सजा भी देगा । इसलिए प्रभु के कहा कि  धैर्य ना खोना अंतिम साँस तक क्योकि तुम्हारी परीक्षा उसी समय लेँगे की तुम मुझे कितना प्रेम करते हो । प्रभु का सन्देश बीच बीच में हमारे तुम्हारे माध्यम से आता रहेगा ।
          जैसे स्वामी विवेक नन्द के आहवान पर पुरे देश में सन्यासी बनने की होड़ सी लग गयी थी ठीक उसी तरह वैसे ही एक महापुरुष के आहवान पर देश के युवा और युवतियों में सदाचारी बनने की होड़ सी लग जाएगी , लाखो लाखो सदाचारी बनेगे । फिर प्रभु के सेना पतियों कि कमी नहीं रहेगी । और वही लोग इस देश के कर्णधार बनेगे फिर बनेगा भारत विश्व शांति का दूत ।
          प्रभु ने अपनी सारी योजना बना ली है और इसकी शुरुआत भी हो चुकी है जरुरत है तो सिर्फ प्रभु के मार्ग पर चलने की ।  

Tuesday, July 24, 2012

देश की स्थिति दयनीय क्यों ?

हम अपने मूल भारतीय संस्कृति को छोड़ कर स्वार्थवश प्रवृति के गुलाम हो गए है , जिससे हमारी अवनति आरंभ हो चुकी  है ।