Friday, August 3, 2012

क्या अन्ना को राजनितिक विकल्प देना चाहिए ?

क्या अन्ना को राजनितिक विकल्प  देना चाहिए ?

तो सीधा सा जवाब है - हाँ अवश्य देना चाहिए । क्योकि इसके सिवा दूसरा उपाय भी नहीं है हमारे  पास की हम अपनी सोंच को संसद तक पंहुचा सके और हम अपनी समस्याओ का  निराकरण ( solutions) पा सके । चूँकि हमारे पास निम्न विकल्प है
(1)  आन्दोलन करे अनशन करे देश को जगाये और अपनी आवाज रिमोट  से चलने वाली सारकार तक पहुचाये, क्या गारंटी है की हमें फिर धोंखा नहीं मिलेगा ? हम किस पर विश्वास करे कौन सी राजनितिक पार्टी हमें सभी समस्याओ निजात दिलाएंगी क्या  कांग्रेस ? सात जन्मो में भी नहीं । उसने आजादी की नीब ही तुस्टीकरण और शोषण के आधार पर रखी अंग्रेजो  की निति अपनागाई कारन की कांग्रेस की बीज  एक अंग्रेज  ने डाली तो गोरे और काले से एक नया ( Hybryd ) वंश तो आयेगा ही फिर उसी नस्ल ने नयी बीज डाली तो बहुत सारे कपूत पैदा हुए ( जैसे लालू , मुलायम , नितीश वि  पी सिंह और भी क्षेत्रीय पार्टिया ) "बोये बीज बबुल के तो आम कहा से पाए "  इनसे उम्मीद करना बेमानी है खुद को धोखा देना है । बीजेपी खुद प्रभु के  मार्ग से भटक चुकी है सभी से प्रेम का नाटक करना छलावा  है सांप्रदायिक विरोधो ने उसे अलग कर रखा है वह पुरे भारत का नेतृत्व नहीं कर सकती है उसमे बदलाव चाहिए, कर्मनिष्ठ होना पड़ेगा देश के प्रति, जबाब देह होना पड़ेगा सभी सम्प्रदायों के प्रति , क्योकि जनता परिवर्तन चाहती है । यह परिवर्तन सभी में होगा पार्टिया बदलेंगी नेता बदलेंगे उनका संविधान बदलेगा वोटर बदलेंगे गाँव बदलेगा सोंच बदलेगा देश बदलेगा ।    

 (2)    या सड़क पर बैठ कर "रघुपति राघव राजाराम  गाते रहे'' इस उम्मीद में की इश्वर कोई चमत्कार करेगा तो ऐसा तभी संभव है की हम सभी खुद को कापुरुष घोषित कर दे । इश्वर यह जान जायेगा की मेरे सभी पुत्र ऐसे ही पैदा हुए है उनके बस की कुछ नहीं है ।      
(3)     यदि गौर करे तो पाएंगे की अन्ना का विकल्प ही बचता है क्योकि जो क्षमता वान है, वीर  है, प्रभु का पुत्र है उसकी दृष्टि सिर्फ निराकरण की और होती है उसे सिर्फ यही चिंता रहती है की सबका भला कैसे हो । यही अन्ना कर रहे है । चोर अन्ना में नहीं हमारे में है हम अन्ना को सब कुछ मानते भी है और कुछ करने भी नहीं देते है यह कैसा अन्ना प्रेम है क्या पिता अपने पुत्रो का बुरा सोंच सकता है ?  नहीं ।   तो फिर अन्ना के कुछ समर्थक जो किसी न पार्टी से जुड़े है खम्भा पकड़ रखे है वो आन्दोलन भी चाहते है काम  भी चाहते है और खम्भा भी नहीं छोड़ना चाहते । पार्टियों के मोह में फंसे  है  यह  फकीरों की टोली है यहाँ सब कुछ छोड़ कर आना पड़ेगा । और सच्चे मन से कहना पड़ेगा की अन्ना तुम  जो चाहते हो उसी में हमारी भला है । और हम तुमसे राजनीती का नया परिभाषा सिखना चाहते है बन जाओ हम सबके गुरु , बिफल हो कोई  बात नहीं  क्योकि स्टुडेंट कच्चे है लेकिन हर साल कोई न कोई तो तुम्हारी पाठशाला से भगत सिंह या लाल बहादुर बनकर निकलेगा । बस हो गया देश का कल्याण । 

Jay Hind 

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